11-12-85  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

सच्चे सेवाधारी की निशानी

सदा दाता बापदादा बोले

आज स्नेह के सागर बापदादा सभी स्नेही बच्चों को देख रहे हैं। हर एक बच्चे में तीन विशेषतायें देख रहे हैं कि हर एक बच्चा तीनों विशेषताओं में कहाँ तक सम्पन्न बना है। वह तीन विशेषतायें हैं - स्नेह-सहयोग अर्थात् सहज योग और शक्ति स्वरूप अर्थात् चलते-फिरते चैतन्य लाइट-हाउस और माईट-हाउस। हर संकल्प, बोल वा कर्म द्वारा तीनों ही स्वरूप प्रत्यक्ष स्वरूप में किसी को भी अनुभव हो, सिर्फ स्वयं के प्रति न हो। लेकिन औरों को भी यह तीनों विशेषतायें अनुभव हों। जैसे बाप स्नेह का सागर है ऐसे मास्टर सागर के आगे जो भी ज्ञानी वा अज्ञानी आत्मा आवे तो अनुभव करे। स्नेह के मास्टर सागर की लहरें स्नेह की अनुभूति करा रही हैं। जैसे लौकिक वा प्राकृतिक सागर के किनारे पर कोई भी जायेगा तो शीतलता की, शान्ति की स्वत: ही अनुभूति करेगा। ऐसे मास्टर स्नेह के सागर द्वारा रूहानी स्नेह की अनुभूति हो कि सच्चे स्नेह की प्राप्ति के स्थान पर पहुँच गया हूँ। रूहानी स्नेह की अनुभूति रूहानी खुशबू वायुमण्डल में अनुभव हो। बाप के स्नेही हैं, यह तो सब कहते हो। और बाप भी जानते हैं कि बाप से सबको स्नेह है। लेकिन अभी स्नेह की खुशबू विश्व में फैलानी है। हर आत्मा को इस खुशबू का अनुभव कराना है। हर एक आत्मा यह वर्णन करे कि यह श्रेष्ठ आत्मा है। सिर्फ बाप की स्नेही नहीं लेकिन सर्व की सदा स्नेही है। यह दोनों अनुभूतियाँ सर्व को सदा और जब हो तब कहेंगे - मास्टर स्नेह का सागर। आज की दुनिया सच्चे आत्मिक स्नेह की भूखी है। स्वार्थी स्नेह देख-देख उस स्नेह से दिल उपराम हो गई है। इसलिए आत्मिक स्नेह की थोड़ी-सी घड़ियों की अनुभूति को भी जीवन का सहारा समझते हैं।

बापदादा देख रहे थे - स्नेह की विशेषता में अन्य आत्माओं के प्रति कर्म में वा सेवा में लाने में कहाँ तक सफलता को प्राप्त किया है। सिर्फ अपने मन में अपने आप से ही खुश तो नहीं होते रहते हो? मैं तो बहुत स्नेही हूँ। अगर स्नेह नहीं होता तो बाप की कैसे बनती वा ब्राह्मण जीवन में कैसे आगे बढ़ती; अपने मन में सन्तुष्टता है इसको बापदादा भी जानते हैं और अपने तक ही, यह भी ठीक है लेकिन आप सब बच्चे बाप के साथ सेवाधारी हो। सेवा के लिए ही यह तन-मन-धन, आप सबको बाप ने ट्रस्टी बनाकर दिया है। सेवाधारी का कर्त्तव्य क्या है? हर विशेषता को सेवा में लगाना। अगर आपकी विशेषता सेवा में नहीं लगती तो कभी भी वह विशेषता वृद्धि को प्राप्त नहीं होगी। उसी सीमा में ही रहेगी। इसलिए कई बच्चे ऐसा अनुभव भी करते हैं कि बाप के बन गये। रोज आ भी रहे हैं, पुरूषार्थ में भी चल रहे हैं, नियम भी निभा रहे हैं, लेकिन पुरूषार्थ में जो वृद्धि होनी चाहिए वह अनुभव नहीं होती। चल रहे हैं लेकिन बढ़ नहीं रहे हैं। इसका कारण क्या है? विशेषताओं को सेवा में नहीं लगाते। सिर्फ ज्ञान देना वा सप्ताह कोर्स कराना यहाँ तक सेवा नहीं है। सुनाना, यह तो द्वापर से परम्परा चल रहा है। लेकिन इस ब्राह्मण जीवन की विशेषता है - सुनाना अर्थात् कुछ देना। भक्ति मार्ग में सुनाना अर्थात् लेना होता है और अभी सुनाना, कुछ देना है। दाता के बच्चे हो। सागर के बच्चे हो। जो भी सम्पर्क में आवे वह अनुभव करे कि कुछ लेकर जा रहे हैं। सिर्फ सुन के जा रहे हैं, नहीं। चाहे ज्ञान से, चाहे स्नेह के धन से, व याद बल के धन से, शक्तियों के धन से, सहयोग के धन से हाथ अर्थात् बुद्धि भरकर जा रहे हैं। इसको कहा जाता है - सच्ची सेवा। सेकण्ड की दृष्टि वा दो बोल द्वारा अपने शक्तिशाली वृत्ति के वायब्रेशन द्वारा, सम्पर्क द्वारा दाता बन देना है। ऐसे सेवाधारी सच्चे सेवाधारी हैं। ऐसे देने वाले सदा यह अनुभव करेंगे कि हर समय बुद्धि को वा उन्नति को प्राप्त कर रहे हैं। नहीं तो समझते हैं पीछे नहीं हट रहे हैं लेकिन आगे जो भी बढ़ना चाहिए वह नहीं बढ़ रहे हैं। इसलिए दाता बनो। अनुभव कराओ। ऐसे ही सहयोगी वा सहजयोगी सिर्फ स्वयं के प्रति हैं वा दूसरों को भी आपके सहयोग के उमंग- उत्साह की लहर सहयोगी बना देती है। आपके सहयोग की विशेषता सर्व आत्माओं को यह महसूस हो कि यह हमारे सहयोगी हैं। किसी भी कमज़ोर स्थिति वा परिस्थिति के समय यह सहयोग द्वारा आगे बढ़ने का साधन देने वाले हैं। सहयोग की विशेषता का सर्व को आप आत्मा के प्रति अनुभव हो। इसको कहा जाता है - विशेषता को सेवा में लगाया। बाप के सहयोगी तो हैं ही लेकिन बाप विश्व सहयोगी है। बच्चों के प्रति भी हर आत्मा के अन्दर से यह अनुभव के बोल निकले कि यह भी बाप समान सर्व के सहयोगी हैं। पर्सनल एक दो के सहयोगी नहीं बनना। वह स्वार्थ के सहयोगी होंगे। हद के सहयोगी होंगे। सच्चे सहयोगी बेहद के सहयोगी हैं। आप सबका टाइटिल क्या है? विश्व-कल्याण्कारी हो या सिर्फ सेन्टर के कल्याण्कारी? देश के कल्याण्कारी हो या सिर्फ क्लास के स्टूडेन्ट के कल्याणकारी हो? ऐसा टाइटिल तो नहीं हैं ना। विश्व-कल्याण्कारी विश्व के मालिक बनने वाले हो कि सिर्फ अपने महल के मालिक बनने वाले हो! जो सिर्फ सेन्टर की हद में रहेंगे तो सिर्फ अपने महल के मालिक बनेंगे। लेकिन बेहद के बाप द्वारा बेहद का वर्सा लेते हो। हद का नहीं। तो सर्व प्रति सहयोग की विशेषता को कार्य में लगाना इसको कहेंगे - ‘सहयोगी आत्मा’। इसी विधि प्रमाण शक्तिशाली आत्मा सर्व शक्तियों को सिर्फ स्व के प्रति नहीं लेकिन सर्व के प्रति सेवा में लगायेंगी। कोई में सहज शक्ति नहीं है, आपके पास है। दूसरे को यह शक्ति देना - यह है शक्ति को सेवा में लगाना। सिर्फ यह नहीं सोचो, मैं तो सहनशील रहता हूँ। लेकिन आपके सहनशीलता के गुण की लाइट-माइट दूसरे तक पहुँचनी चाहिए। लाइट-हाउस की लाइट सिर्फ अपने प्रति नहीं होती है। दूसरों को रोशनी देने वा रास्ता बताने के लिए होती है। ऐसे शक्ति रूप अर्थात् लाइट-हाउस, माइट-हाउस बन दूसरों को उसके लाभ का अनुभव कराओ। वह अनुभव करें कि निर्बलता के अंधकार से शक्ति की रोशनी में आ गये हैं वा समझें कि यह आत्मा शक्ति द्वारा मुझे भी शक्तिशाली बनाने में मददगार है। कनेक्शन बाप से करायेगी लेकिन निमित्त बन। ऐसे नहीं कि सहयोग देकर अपने में ही अटका देगी। बाप की देन दे रहे हैं, इस स्मृति और समर्थी से विशेषताओं को सेवा में लगायेंगे। सच्चे सेवाधारी की निशानी यही है। हर कर्म में उस द्वारा बाप दिखाई देवे। उनका हर बोल बाप की स्मृति दिलावे। हर विशेषता दाता के तरफ इशारा दिलावे। सदा बाप ही दिखाई देगा। वह आपको न देख सदा बाप को देखेंगे। मेरा सहयोगी है, यह सच्चे सेवाधारी की निशानी नहीं। यह कभी भी संकल्प मात्र भी नहीं सोचना कि मेरी विशेषता के कारण यह मेरे बहुत सहयोगी हैं। सहयोगी को सहयोग देना मेरा काम है। अगर आपको देखा, बाप को नहीं देखा तो यह सेवा नहीं हुई। यह द्वापरयुगी गुरूओं के माफिक बेमुख किया। बाप को भुलाया, न कि सेवा की। यह गिराना है, न कि चढ़ाना है। यह पुण्य नहीं, यह पाप है। क्योंकि बाप नहीं है तो जरूर पाप है। तो सच्चे सेवाधारी सत्य के तरफ ही सम्बन्ध जोड़ेंगे।

बापदादा को कभी-कभी बच्चों पर हँसी भी आती है कि लक्ष्य क्या और लक्षण क्या! पहुँचना है बाप तरफ और पहुँचाते हैं अपने तरफ। जैसे दूसरे डिवाइन फादर्स के लिए कहते हो ना, वह ऊपर से नीचे ले आते हैं। ऊपर नहीं ले जाते हैं। ऐसे डिवाइन फादर नहीं बनो। बापदादा यह देख रहे थे कि कहाँकहाँ बच्चे सीधे रास्ते के बजाए गलियों में फँस जाते हैं रास्ता बदल जाता है। इसलिए चलते रहते हैं लेकिन मंजल के समीप नहीं पहुँचते। तो समझा! सच्चा सेवाधारी किसको कहते हैं! इन तीनों शक्तियों वा विशेषताओं को बेहद की दृष्टि से, बेहद की वृत्ति से सेवा में लगाओ अच्छा –

सदा दाता के बच्चे दाता बन हर आत्मा को भरपूर करने वाले, हर खजाने को सेवा में लगाए हर समय वृद्धि को पाने वाले, सदा बाप द्वारा प्रभु देन समझ औरों को भी प्रभु प्रसाद देने वाले, सदा एक के तरफ इशारा दे एकरस बनाने वाले, ऐसे सदा और सर्व के सच्चे सेवाधारी बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।’’

पार्टियों से - सदा अपनी गुणमूर्त्त द्वारा गुणों का दान देते रहो। निर्बल को शक्तियों का, गुणों का, ज्ञान का दान दो तो सदा महादानी आत्मा बन जायेंगे। दाता के बच्चे देने वाले हो, लेने वाले नहीं। अगर सोचते हो यह ऐसा करे तो मैं करूँ, यह लेने वाले हो गये। मैं करूँ, यह देने वाले हो गये। तो लेवता नहीं, देवता बनो। जो भी मिला है वह देते जाओ। जितना देते जाओ उतना बढ़ता जायेगा। सदा देवी अर्थात् देने वाली। अच्छा-